Wednesday, September 5, 2012

जो कभी मैने उससे कहा था......


कुछ खण्डित भावनायें

स्फ़ुटित होती शब्दों में

जो कभी मैने उससे कहा था......
 
क्रोध मत करो वत्स
इस नश्वर संसार में
देखों सब मरे हुए हुए है
या यूं कह लो कि सभी अजन्मा है
 ........................................................?
हम कल भी थे और आज भी है और कल भी रहेगे
हम एक ही तो है
....................................................?
हम हजारो वर्ष पहले भी मिले थे
जब जन्म हुआ था जीवन का
  ?
या इससे पूर्व जब हम जीवित होने की परिभाषा में बधे नही थे
  हम रेत के रूप में थे
 .....?   जल के रूप मे

अग्नि के रूप मे
शिला के रूप में
और जब उस पहली कोशिका का निर्माण हुआ था तब भी हम तुम में ही थे
और आज उस कोशिका ने अपने जैसे तमाम प्रतिरूप गढ़े रूप सरंचनायें बदली
तब भी हम एक ही हैं
दूरियां समाज की परिभाषायें उस तत्व का क्या करेंगी जो जोड़ता है, हम से तुम को...
जिसे महसूस किया है, हमने
इस प्यार के रूप में
हम सभी तो एक है फ़र्क इतना है हम कितने रूपों को अपने भीतर बसायें हैं....

(अधूरा वार्तालाप जो मैने कभी उससे कहा था?)


कृष्ण कुमार मिश्र
--
Krishna Kumar Mishra
Wildlife biologist & Nature photographer
Manhan House
77, Canal Rd. Shiv Colony
lakhimpur-Kheri-262701
Uttar Pradesh, India
Cellular: 09451925997
http://dudhwalive.com
http://krishnakumarmishra.blogspot.com
http://manhanvillage.wordpress.com
http://kabulaha.blogspot.com

Friday, August 31, 2012

उसकी यादें....








मुसलसल याद को उसकी मैं दरिया को दे आया ।

मुझे ठहरी हुई चीजें कभी अच्छी नही लगती ॥

                                                                 --- कृष्ण


 



कृष्ण कुमार मिश्र
09451925997


Monday, August 27, 2012

कुछ यूँ ही सोचता हूँ !



सोचता हूं कि मैं भी साहिब-ए- वक्त हो जाऊं,
अब तलक मगर मुझको कोई मोहसिन न मिला---कृष्ण



खयाल





उसका इक निशां बाकी रह गया मेरे दयार में
सोचता हूं दरिया में बहाऊं या सुपुर्दे खाक करूं----कृष्ण