Sunday, June 26, 2011

और प्रादुर्भाव हो बस प्रेम का....



एक कविता जो उसके लिए है !
 - कृष्ण

तेरे जीवन के सुखद नववर्ष का आरम्भ हो ।
तिलमिलाती जिन्दगी में एक नया एहसास हो ॥

सूर्य की पहली किरण स्पर्श कर जाए तुझे ।
आभा अलौकिक सूर्य की मुख पर निखर आये तेरे ॥

चांद-तारों, की तरह तेरा प्रयोजन हो सदा ।
घोर अधियारे में हमेशा तू चमक जाए सदा ॥

शब्द निकले प्रेम के जब-जब खुले तेरे अधर।
सत्य की ही राह हो जिस तरफ़ हो तेरे कदम ॥

तेरे ह्रदय में ज्ञान का हो प्रज्ज्वलित दीप ऐसा।
विषमतायें समस्यायें निराशायें दूर हों।

सहजता हो नम्रता हो और हो करूणामयी।
धर्म और सभ्यता से सदा मड़ित रहे॥

मनोबल और भावनाओं में ऊँचाई हो शिखर सी।
 अभिव्यक्ति  हो भावों में सदा स्नेह की॥

रक्त-रंजित और प्रदूषित इस धरा की मलिनता को।
धैर्य की प्रति-मूर्ति बनकर दूर कर दो सौम्यता से॥

इक छटा सी बिखर जाए लालिमा की।
और प्रादुर्भाव हो बस प्रेम का ॥



कृष्ण कुमार मिश्र
krishna.manhan@gmail.com





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