बूढ़ा नीम -
(प्रथम खण्ड) रचना काल मध्य रात्रि १४-१५ जुलाई २००५- लखीमपुर खीरीमेरे घर के सामने नीम का पेड़
सदियों से खड़ा है! वही पर है
जाड़ा गर्मी, बरसात बार-बार आते है
मौसम यूँ ही बदलते रहते है
नन्हे-नन्हे फ़ूल खिलते है
निमकौरियां फ़लती है
माँ कहती है
नीम का तेल बड़ा गुड़ी होता है
बरसात में फ़लती निमकौरियां
जमीन पट जाती
भिनभिनाती मधुमक्खियां, डिंगारे! भी
मैं बीनता इन्हे, खा भी लेता
मैं बड़ा होता गया
नीम बूढ़ा होता गया!
पेड़ की जड़ पर कुछ पत्थर रखे थे
जिन्हे मैं पूजता था
बूढ़ा नीम कुछ-कुछ मानव की आकृति लिए था
सो उसे मै भवानी माँ कहता था
लोग आते-जाते गये कि नीम है अकड़ा सा खड़ा है
सदियों से!
पर अब वह भी बूढ़ा हो चला
कुछ शाखाये सूख चुकी है,
कुछ गिर भी गयी
जैसे मेरे अपने मुझसे दूर हो गये
एक-एक कर
वैसे ही नीम खोता गया अपना
एक-एक अंग
एक परिवार की तरह
अपनो को खोने का एहसास होता है मुझे
ह्रदय विदारक कूह सी उठती है
पर चीख में तब्दील नही हो पाती
जिनकी गोद में खेला न जाने कितने बरस
जिनसे चलना सीखा
बोलना खाना और पढ़ना
उनसे बिछड़ना और बिछड़ने की याद
जमीन खिसकती है पैरो तले से
दर्द से चाती फ़टती है पर आंसू नही निकलते
क्या यही एहसास होता होगा
इस नीम को जो इतना खोने पर भी
तना अकड़ा सा खड़ा है!
या फ़िर मुझ से कहता है
कि यही दस्तूर है दुनिया का
प्रारम्भ फ़िर अन्त
जन्म फ़िर मृत्यु
क्यूं असमजंस में है
मगर मुझे डर है
कि कही यह पेड़ गिर न जाये
गिर गया तो सब खत्म हो जायेगा
यह भय मुझे झकझोर जाता है
सब बतलाते है यह तो प्रकृति का नियम है
पर यह कैसा नियम
अपने खो जाते है कुछ दूर अनजानी सी जगह
फ़िर भी हम जीते है कुछ मरे हुए से!
पर जीने के लिए फ़िर जुट जाते है
इसी जतन में कटती है जिन्दगी
अपनो को खोने का एहसास लिए
पर आज भी जब मैं उस
बूढ़े पेड़ को देखता हूं
मुझे उसमे नित नया जीवन नज़र आता है
अंकुरित होती हुई निमकौरियां
पल्लवित होती नवीन शाखायें
इतना खोने पर भी
नित नया जीवन
टूटी हुई शाखाओं के रुण्डों में
हरियाली देखी मैने
इस बरसात में
क्या इतना कठिन है जीवन
जिसे प्रकृति की हज़ार चोटे भी
बोझिल नही कर पाती
यह संघर्ष
जो सिर्फ़ जीने के लिए है
इतना अटल
कुछ-कुछ अमरत्व लिए
क्या जीवन कभी नष्ट नही होता
होता भी है तो क्या रूप बदलते है!
वह बूढ़ा वृक्ष
मुझे नवीनता देता है
हर बरस
पर मुझे याद दिला जाता है
सदियों का जीवन
और जीवन का सत्य
(मैं इन भावनाओं को अपने पुरखों को समर्पित करता हूँ। )
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कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-२६२७२७
खीरी
९४५१९२५९९७