Monday, July 2, 2007

वहां देखा तो गम का कारखाना निकला















नाज़ हमको भी था दीवानों की शख्सिअत पर
दिलो मे झांक कर देखा तो गमगीनियों का इज़ाफा निकला


जिसको समझता था मै कोहिनूर अब तक
आज़ देखा तो वह पत्थर निकला

आशा थी मुझे सूरज की चमक होंगी उसमे
रात मे देखा तो दम तोडता हुआ दीपक निकला


जिसे कहता था अपने घर का चाँद
अधियारी रात मे देखा तो टिमटिमाता हुआ तारा निकला


जिसे समझता था बुजरगो की दुआ का आलम
मौके वारदात पर वहा काफिर निकला


जिसे समझता था गुलिस्तान अब तक
शैरे गुलसन की तो वहा कांटो का अशियाना निकला


जिसे समझता था प्रेम का मकान
वहां देखा तो गम का कारखाना निकला

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
९४५१९२५९९७

1 comment:

Randhir Singh Suman said...

जिसे समझता था बुजरगो की दुआ का आलम
मौके वारदात पर वहा काफिर निकलाnice