नाज़ हमको भी था दीवानों की शख्सिअत पर
दिलो मे झांक कर देखा तो गमगीनियों का इज़ाफा निकला
जिसको समझता था मै कोहिनूर अब तक
आज़ देखा तो वह पत्थर निकला
आशा थी मुझे सूरज की चमक होंगी उसमे
रात मे देखा तो दम तोडता हुआ दीपक निकला
जिसे कहता था अपने घर का चाँद
अधियारी रात मे देखा तो टिमटिमाता हुआ तारा निकला
जिसे समझता था बुजरगो की दुआ का आलम
मौके वारदात पर वहा काफिर निकला
जिसे समझता था गुलिस्तान अब तक
शैरे गुलसन की तो वहा कांटो का अशियाना निकला
जिसे समझता था प्रेम का मकान
वहां देखा तो गम का कारखाना निकला
कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
९४५१९२५९९७
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जिसे समझता था बुजरगो की दुआ का आलम
मौके वारदात पर वहा काफिर निकलाnice
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