Monday, July 2, 2007

यहां नफरत को लोग बडे ढंग से समझते है






दीवानगी


कौन रहता है मुस्तकिल अपने असूलों पर
लोग हर लम्हा यहां रंग बदलते है

किस पर हो यकीं किस पर गुमां करू
लोग हर रोज नई शक्ल मे ढलते है

किससे करूं वफ़ा बेवफ़ा किसे कहूं
यहां नफरत को लोग बडे ढंग से समझते है

मिज़ाज अपना ही बदल लेता हूँ कृष्ण
दीवानगी की लोग यहाँ कद्र कहा करते है

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी

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