फता भर ढूदते रहे वो हमदम,
अफ़सोस की वो खुद की फितरत न बदल पाए. कृष्ण
दोस्ती के सबब क्या है ताकीद नहीं उनको,
वो तो हर रोज नई शक्ल में ढलते है! कृष्ण
राहें बदल गई मंजर बदल गए,
अफ़सोस है की नाज़िर की फितरत बदल गयी! कृष्ण
अफ़सोस है की नाज़िर की फितरत बदल गयी! कृष्ण
परस्तिश के ख्वाइश मंद थे हम,
हमें क्या मालूम था कि हमने बुत से मोहब्बत की है! कृष्ण
जिस्म के कारोबार में रूहे भी बदल गयी,
शक्ल तो मौजूं है, सीरत बदल गयी. कृष्ण
तेरे हर लफ्ज को ज़िंदगी दी हमने,
तूने कई बरसों बाद फकत कुछ मुर्दा लफ्ज कहे ! कृष्ण
तेरे रुखसार हथेली में लेकर,
जी तो करता है कि बोसों की बारिश कर दूं ! कृष्ण
हमारी मोहब्बत से खौफ जदा है लोग,
क्यों की उन्हें मोहब्बत का कोई फ़साना नहीं आता ! कृष्ण
बड़े एहतराम से आये थे तेरी गली में,
तुझको सलाम किए बगैर लौटना नसीब था ! कृष्ण
तुम्हारी गलियों तक ही तवाफ नहीं किया है हमने,
हम तो मीलों से फना होने चले आये है! कृष्ण
हम तेरे मुन्तजिर तो नहीं, तेरे जिस्म ओ रूह के सौदाई है!
देख ये मेरी मोहब्बत है, और ये तेरी शिनासाई है ! कृष्ण
देख ये मेरी मोहब्बत है, और ये तेरी शिनासाई है ! कृष्ण
तुम गलियों के सबब की बात करती हों,
हम तो मीलों से फना होने चले आये हैं! कृष्ण
वो मेरे जिस्म में पैबस्त है खंजर की तरह,
निकालू तो दर्द बढ़ता है! कृष्ण
वो जब
भी मिली मुझसे गुलाबी सहरा में,
अब्र ने बारिश का तोहफा दिया...कृष्ण
उस शहर में अब तामीर-ए- मोहब्बत होगी,
ताज वाला भी जहन्नुम में शर्म खायेगा!...कृष्ण
वो पोशीदा हुई मुझ से उसे क्या मालूम,
कि उसने खुद से खुद को पोशीदा किया है ! कृष्ण
बेखुदी का आलम कुछ इस कदर है,
कि उस शहर में उसी का अक्स बिखरा हुआ है चारों तरफ....कृष्ण
एक चिड़िया के इरादे देखो।
नशेमन मुसलसल बुनती रहती है, हर तूफ़ान के जाने के बाद...कृष्ण
Copyright: Krishna Kumar Mishra (krishna.manhan@gmail.com)
2 comments:
सुंदर रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
आप की ये खूबसूरत रचना आने वाले शनीवार यानी 26/10/2013 को ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक की गयी है...
आप भी इस प्रसारण में सादर आमंत्रित हैं...आये इस प्रसारण में आप का स्वागत है...
सूचनार्थ।
घर कितने हैँ मुझे ये बता, मकान बहुत हैँ।
इंसानियत कितनो मेँ है, इंसान बहुत हैँ॥
मुझे दोस्तोँ की कभी, जरूरत नहीँ रही।
दुश्मन मेरे रहे मुझ पे, मेहरबान बहुत हैँ॥
दुनिया की रौनकोँ पे न जा,झूठ है, धोखा है।
बीमार, भूखे, नंगे,बेजुबान बहुत हैँ॥
कितना भी लुटोँ धन,कभी पुरे नहीँ होँगे।
निश्चित है ...
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