चलो अब खुद हम सब खुद्दार हो जाए।
इससे पहले की हम सब आम ! हो जाए। कृष्ण
अल्फ़ाज निगारी की कसम मुझको ऐ मेरे दोस्त।
अब मेरे हर लफ्ज़ का सिर्फ तुझसे वास्ता होगा। कृष्ण
तुझसे कहने को मेरे लबों में कशमकश तो है।
मगर सारे हुरूफ आजकल हड़ताल पर गए है। कृष्ण
आदमी जब आदमी से बेमुरब्बत हो गया।
इनको जंगल के परिंदों से मुरब्बत कैसे हो! कृष्ण
है कलम पुरजोर पर रोशनाई खो गयी।
लोग शामिल है शगल में रहनुमाई खो गयी। कृष्ण
कृष्ण कुमार मिश्र "कृष्ण"
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