(टुकड़े टुकड़े में तसव्वुर मेरे प्यार के हैं ये !
गजल नहीं है न शेर सिर्फ एहसास हैं ये ! कृष्ण )
कितनी मुद्दतों से उदास थे हम।
तुम मिले भी तो दर्द का इक और साज़ दे गए। कृष्ण
आजकल वो तन्हाईयों में रहता है।
लगता है उसने आशिकी कर ली। कृष्ण
तेरे सहरा की गुलाबी रेत पर जो बनाए अफ़साने हमने।
सूना है हवा के झोकों ने उन्हें कब का मिटा दिया। कृष्ण
हम गीली जमीन वाले क़दमों के निशाँ छोड़ जाते हैं।
तेरे सहरा की रेत में कोई निशाँ कहाँ टिकता। कृष्ण
उनके तगाफुल ने दिल ओ जाँ को ऐसी तबाही दे दी।
अब किसी सवाल का मेरी जुबां जवाब नहीं देती।। कृष्ण
निगाह-ए-सोख से तेरे इन्कलाब हो गया।
मैं रफ्ता रफ्ता जर्रा से आफताब हो गया।कृष्ण
सारे इबलीस है मौंजू चारों तरफ मेरे।
मैं मुकम्मल हूँ कि खुदा दिल में मेरे रहता है। कृष्ण
तुमने दामन छुडा लिया जबसे।
सहरा सहरा सा हो गया हूँ मैं। कृष्ण
जब तलक इश्क में रुश्बा न हों।
दीवानगी तमाम नहीं होती। कृष्ण
अर्श पे जा पहुँचे कुछ लोग खुद में सूरज सा गुमाँ रखने लगे।
फर्श रोशन है जबकि अपने जुगुनू से आफताबों से। कृष्ण
रेत की मानिंद सरकते हुए रिश्तों के मिजाज देखे हैं।
हमने बेपरदा नसीनों के फरेबी हिजाब देखे है।।।कृष्ण।।
इश्क की अँगड़ाईयों में नकली जज्बातों के कमाल देखे है।
अपनी क्या कहूं कृष्ण हमने तो फर्श में भी कई आफताब देखे है। ।।कृष्ण।।
इश्क नाजिर है अल्लाह की निगेहबानी में
वो फिर भी फरेब के परदे में बैठे है। ।।कृष्ण।।
इश्क की तशनगी ने हर दर से मुझे रूश्वाई दी है,
यार मेरे तूने मुझे क्यूं ऐसी बेवफाई दी है ! कृष्ण
तुम्हारे इश्क ने मुझको आवारा बना दिया,
वरना मुझमे भी संजीदगी की रौनक हुआ करती थी!..कृष्ण
आह तक नहीं निकली आप के हुज़ूर, हम तो तुम्हारे इश्क में बर्बाद हो गए!
गाफिल हुए कुछ इस कदर खुद से, की खुद ही से बेजार हो गए ! कृष्ण
इश्क की चादर पर हम पैबन्दगी नहीं करते !
दामन फटा सही हम नई चाह की तश्नगी नही रखते ! कृष्ण
जो दरिया में डूबे है वो कतरों की ख्वाइश नहीं करते !
इश्क में सरोबार हुए लोग गम ए दिल की नुमाइश नहीं करते ! कृष्ण
तुम बहुत दूर गए मुझसे ये मेरी निगाह की जानिब बता रही है...
ये अलग बात है की दुनिया को तुम्हारा अक्स मेरी आँखे दिखा रही है. कृष्ण ..
हमने गले मिलने के बड़े सबब देखें है,
पहले आशनाई और फिर बेवफाई के करम देखे हैं! कृष्ण
मेरे लबो से तबस्सुम चला गया ,
उसने मेरे अश्को से जो दोस्ती कर ली ! कृष्ण
मुक्कदस इश्क को मैंने ख्यालों में सजाया था,
मगर उस शख्स ने तो इश्क के बाज़ार किए थे! कृष्ण
वो मेरे चश्म ए तर में रहती है,
डर है कि वो अश्क बनके पलको से न लुढ़क जाए कही ! कृष्ण
मकान व् मकाम सभी के नसीब में कहाँ होता है,
ये जिन्दगी के खूबसूरत कलाम सभी के नसीब में कहाँ होता है. कृष्ण
मेरे करीब तो आओ मेरे हमदम,
मेरे हाथ में तेरी तकदीर है खंजर तो नहीं ! कृष्ण
मेरे जख्म रिसते रहेंगे यूं ही क़यामत तक,
जब तलक तू वफादार नहीं होगा! कृष्ण
वो मुहं छिपाते है आज हमसे,
जो कल मेरे जिस्म ओ जान से बावस्ता थे ! कृष्ण
जिनका नसीब हम थे कभी वो दूर हो गए
मुद्दत के बाद हम भी अपने मुक्कद्दर के हो गए ''कृष्ण'
कृष्ण कुमार मिश्र "कृष्ण"
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