देश की माटी वही है बीज नकली हो गए।
हमवतन तो हैं वही कुछ लोग नस्ली हो गए। कृष्ण
तू इतनी खुद परस्त होगी ये ख्याल न था हमें।
वरना हम मोहब्बत के एवज में व्यापार कर लेते। कृष्ण
रिफाकत को मेरी बस बेंच दी कुछ चंद सिक्कों में।
फकत हम आज तब भी उन्ही का नाम लेते है। कृष्ण
शनासाई उन्ही से थी उन्ही से इश्क था मुझको।
मगर अफ़सोस ये है कि उन्ही ने क़त्ल कर डाला। कृष्ण
तसब्बुर में मेरे कभी भी वो नहीं आये ।
ये तो खुद ही से खुद को इश्क करने की कवायद थी। कृष्ण
उनकी रंगीन मिजाजी का तो हम लुत्फ ले बैठे।
बिना समझे कि इक दिन दर्द दिल में बेपनाह होगा। कृष्ण
ज़िंदगी में दिए जो जख्म अपनों ने।
उन्हें भरने में काफी वक़्त निकलेगा। कृष्ण
मोहब्बत में किसी को खुद की सीरत समझ लेना।
यही इंसान की सबसे बड़ी बेवकूफाना आदत है? कृष्ण (एक सस्ता शेर)
कभी इक मुकम्मल फलसफा था हमारी आशनाई का।
अब फकत कुछ चंद जुमलों की अहद में रोशनाई है! कृष्ण
कृष्ण कुमार मिश्र "कृष्ण"
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