एक स्तुति जो मेरे ह्रदय में कभी उपजी थी
सरस्वती वन्दना-
हे माँ
विद्यावरदायिनी
वीणा पुस्तकधारिणी
मुझे सदज्ञान दो।
सदा जीवन के पथ पर सतमार्ग दो।
सदा हम ज्ञान के पथ पर चले।
ऐसा हमें वरदान दो॥
सदभावना सत्कर्म और सत्संग को प्रेरित रहें।
सदा मानव जाति में अध्यात्म से पोषित रहें
सदमार्ग में आये अगर बाधा कोई
फ़िर भी कभी सतमार्ग से विचलित न हो॥
हे माँ..............
हे माँ मुझे ज्ञान से विज्ञान से पोषित करो
मस्तिष्क में तुम ज्ञान दो शिव की तरह
जीवन के पथ पर कर्म दो तुम कृष्ण का
आदर्शता दो तुम हमें प्रभु राम की॥
हमको विलक्षण ज्ञान की तुम ज्योति दो
इस ज्योति से कर दू प्रज्ज्वलित धर्म को
ऐसा मुझे अभ्यास दो॥
सभ्यता जीवित रहे मुझ में सदा
ऐसा मुझे वरदान दो॥
(यह रचना मैने अपने पिता स्व० श्री रमेश चन्द्र मिश्र जी के कहने पर उस वक्त लिखी थी जब मैं स्नातक का छात्र हुआ करता था, यह १९९८ के किसी दिन की घटना है, जब ये महान शब्द मेरे मस्तिष्क में उपजे, ये शब्द मुझे इतने प्रिय लगे कि आज तक इस रचना को मैने प्रकाशन के लिये नही भेजा, शायद ये मेरे लिये मेरी सर्वोत्तम कृति रही हो, आज मैं इस दैवीय आराधना व स्व-निर्माण के लिए प्रेरित करने वाली रचना को एक प्रतिष्ठित पत्रिका को भेज दिया है।)
कृष्ण कुमार मिश्र
१- ग्राम- मैनहन पोस्ट-ओदारा
जिला-खीरी
उत्तर प्रदेश
२- 77, शिवकालोनी कैनाल रोड, लखीमपुर खीरी-262701
सेलुलर - 09451925997
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१- ग्राम- मैनहन पोस्ट-ओदारा
जिला-खीरी
उत्तर प्रदेश
२- 77, शिवकालोनी कैनाल रोड, लखीमपुर खीरी-262701
सेलुलर - 09451925997
2 comments:
JAI JAI MA SHARDE..
bahut achhi prastuti hai bhai ji..
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