Tuesday, July 3, 2007

जब बेवफ़ाई पर भी तुझको प्यार आये









इश्क वो इबादत है
आँखो में हो आँसू


ओंठो पे मुस्कान उभर आये
प्यार में टूट कर मंजिल पर पहुंच जाये


महबूब के दीदार से दिल मे पाकी़जगी का हो एहसास
और दिल से निकली हुई आहों मे हो दुआयें


कितना ही क्यो न हो महबूब फ़रेबी
फिर भी देखो जब उसे तो प्यार उमड़ आये


तेरा काम ही है आशनायी कृष्ण
बात तब है जब बेवफ़ाई पर भी तुझको प्यार आये


कृ्ष्ण कुमार मिश्र
लखीमपु्र खीरी
9451925997

Monday, July 2, 2007

वहां देखा तो गम का कारखाना निकला















नाज़ हमको भी था दीवानों की शख्सिअत पर
दिलो मे झांक कर देखा तो गमगीनियों का इज़ाफा निकला


जिसको समझता था मै कोहिनूर अब तक
आज़ देखा तो वह पत्थर निकला

आशा थी मुझे सूरज की चमक होंगी उसमे
रात मे देखा तो दम तोडता हुआ दीपक निकला


जिसे कहता था अपने घर का चाँद
अधियारी रात मे देखा तो टिमटिमाता हुआ तारा निकला


जिसे समझता था बुजरगो की दुआ का आलम
मौके वारदात पर वहा काफिर निकला


जिसे समझता था गुलिस्तान अब तक
शैरे गुलसन की तो वहा कांटो का अशियाना निकला


जिसे समझता था प्रेम का मकान
वहां देखा तो गम का कारखाना निकला

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
९४५१९२५९९७

आज की रात प्यासी है बहुत




















आज तेरी याद मुझको सताती है बहुत
आज की रात प्यासी है बहुत

तेरा एहसास समन्दर की तरह है
तेरी याद मुझे तड़पाती है बहुत

एक ख्वाइस है तेरे दीदार की मुझे
ज़्यादा न सही कुछ लम्हो के किरदार की तेरे

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
९४५१९२५९९७


यहां नफरत को लोग बडे ढंग से समझते है






दीवानगी


कौन रहता है मुस्तकिल अपने असूलों पर
लोग हर लम्हा यहां रंग बदलते है

किस पर हो यकीं किस पर गुमां करू
लोग हर रोज नई शक्ल मे ढलते है

किससे करूं वफ़ा बेवफ़ा किसे कहूं
यहां नफरत को लोग बडे ढंग से समझते है

मिज़ाज अपना ही बदल लेता हूँ कृष्ण
दीवानगी की लोग यहाँ कद्र कहा करते है

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी

Sunday, May 6, 2007

इश्क में हर लम्हा लोग कुर्बान हुआ करते है...






मोहब्बत
१६-०१-१९९९

लोग कहते है की मोहब्बत में आबाद हुआ करते है
मैंने देखा है की बर्बादियों के भी सामान हुआ करते है

यूं तो आशिकी में दिल को सुकून मिलता है
लेकिन वहां दर्द व गम के सारे सामान हुआ करते है

मोहब्बत में पाकीज़गी का जिक्र सुना है हमने
मैंने देखा है कि जिल्लत के भी सारे सामान हुआ करते है

दीवानों की जुबानी है मासूक बडें दिलकश होते हैं
ठीक कहता हूँ तो अगर उनके पास दिल तोडनें के भी औजार हुआ करते हैं

इश्क की कारगुज़ारिओं का बयाँ क्या करे कृष्ण
इश्क में हर लम्हा लोग कुर्बान हुआ करते है

कृष्ण कुमार मिश्र

Krishna Kumar Mishra
77, Canal Road Shiv Colony Lakhimpur Kheri-262701
Uttar Pradesh
India
cellular-091-9451925997

Saturday, May 5, 2007

इस जमाने से खौफ है हमको


 







दौर ए ज़माने को क्या कहूँ  कृष्ण...
















तलाश थी हमकों एक अशियानें की
आशियाँ जितने मिलें खौफ बारिस का था उनको

चाहत थी वफ़ा की बड़ी हमको
पर बेवफाई का खौफ था उनको

हसरत उनको भी बड़ी थी मेरी मोहब्बत की
पर जगहसाई का खौफ था उनको

जमाने कितने रंग दिखाता है हमें
पर भटक जानें का खौफ है हमको

इश्क होती है इबादत माशूक के बुत की
पर बुत के खो जाने का खौफ है हमको

दौर ए ज़माने को क्या कहूँ कृष्ण
अब तो इस आदमखाने से खौफ है हमको
या फ़िर इस जमाने से खौफ है हमको

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
9451925997

मेरे भाव मेरी संवेदनायें


 वर्जना
 -कृष्ण

तुझमें क्या हैं
जो पागल बनाता है मुझें
नित नई तरंग नित नया अध्याय
जो तुझसे है संबन्धित!

तेरा ही गुणगान तेरा ही मान
क्यो भाता है मुझे
इतना अपनापन इतनी आत्मीयता
जो सिर्फ तुझसे है
कितना ससक्त है तेरा आकर्षण
जो हमेशा लुभाता है मुझे
तेरा ही स्मरण
चाहे हो उसमें कटुता या सरसता
हर वक्त याद तेरी दिलाता है मुझे
क्या प्रेम है तुझसे या मात्र आकर्षण
या वासना का जाल
किससे ग्रसित है मेरा मन
असमंजस में हूँ
फ़िर भी निश्छ्ल हूँ
कयोंकि तुझ पर ही पूर्ण समर्पित हूँ

कृष्ण कुमार मिश्र
७७, कैनाल रोड़ शिव कालोनी लखीमपुर खेरी
उत्तर प्रदेश
भारत