Tuesday, January 28, 2014

मोहब्बत में तेरी वो लफ्ज़ बेजा हो गए


मेरे लबो से तबस्सुम चला गया ,
 उसने मेरे अश्को से जो दोस्ती कर ली ! कृष्ण 

 मैं तेरी याद में तड़पा बहुत साल दर साल।
 तुम सोते रहे बगैर ख़याल के मेरे। कृष्ण


मोहब्बत खुद में गाफिल थी
 की तुमसे है है की मुझ पे है। कृष्ण

उसके बदन की तहजीब जुदा थी दिमाग से। 
इसीलिए तो हम गुजरते चले गए। कृष्ण 

उन राहों के मंजर जो नाजिर थे तुमसे। 
आजकल देखता हूँ तो मुहं चिढाते हैं। कृष्ण


तेरी आमद से रोशन हुआ करता था दिल का जहां।
 अब तो हम दूरियों की पैमाइश किया करते हैं। कृष्ण


एक खूबसूरत जहन जिसे गंदा कर दिया उसकी शोहबत ने।
 अब तो दिल में इक गंगा बहानी होगी। कृष्ण 


कभी तन्हाई के अहद में हम उसको खोजा करते थे।
 अब महफ़िल में भी हम खुद को खोजा करते है। कृष्ण 


वो हमसे विछुड़ गए। अफ़साना बनने से पहले। 
शेर का मिश्रा कई बरसो से शेर मुक्कमल होने की राह देख रहा है।।।। कृष्ण 

मोहब्बत में तेरी वो लफ्ज़ बेजा हो गए। 
जिनके दम पर हमने अफ़साने की ख्वाइश रखी थी। कृष्ण 

कृष्ण कुमार मिश्र "कृष्ण"

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