गौरैया तुझे जब देखता हूँ अपने आँगन में
तो उसके घर में तेरा वो नशेमन याद आता है.
उसने दिखाया था तेरा वो घोसला जो उसके उस मकान में था
तू मेरे घर को मुस्तकिल नशेमन बना ले तो मुझको तसल्ली हो.
गौरैया तुम रेत में घरौंदे क्यों बनाती हों जो बिखरते है हल्की बयार से.
चलो आओ माटी के घर अब भी तुम्हारा इंतज़ार करते है.
उस चिड़िया की चहचहाहट सुने हुए मुद्दतें गुज़र गई.
दूर से आती हुई उसकी सिसकियाँ मुझे अब सोने नहीं देती.
चलो चले उस चिड़िया को हंसाया जाए
सूने से चमन को गुलिस्तान बनाया जाए.
कृष्ण कुमार मिश्र "कृष्ण"
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