बड़ी मुद्दतों से न आया कोइ पैगाम उसका
लगता है अब मेरे ग़मों से बेखबर है वो ...
जिन दरख्तों तले तेरी याद में मैं रोया था जार जार।
गुजरता हूँ जब भी उधर से तो वो तेरा हाल पूंछते हैं ।
दर्द इसलिए नहीं है मुझको की तू मेरे पास नहीं
अफ़सोस ये है की मैं उन यादों को अब दोहरा नहीं सकता ..
तुझसे और तेरे गाँव से जब नाता हुआ था मेरा
उन्ही पलों में मेरा सबकुछ हुआ था तेरा ..
मेरी शायरी तो सिर्फ बहाना है
तुझे बस हाल ए दिल सुनाना है .
यकीं नहीं होता तू इतना करीब आकर मुझसे दूर होगी
इसीलिए मैं तेरी अब भी राह तकता हूँ ...
वो गाँव वो शहर वो राहें जो तुमसे बावस्ता थी
कोइ जिक्र करता है तो तेरी सूरत नज़र आती है मुझे .
कभी लगता है यार हम मोहब्बत के काबिल ही न थे
फिर भी तुमने कितने साल बेजा किए मुझसे मोहब्बत करके ..
वो तमाम सफ़र मुकम्मल करूंगा जरूर इक दिन.
जो अधूरे रह गए थे जब हम साथ साथ थे ..
कृष्ण कुमार मिश्र "कृष्ण"
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