Saturday, June 14, 2014

जहां बंटती है कामनाएं....


नेपथ्य से
उसे निहारना
स्नेहिल आँखों से
कामनाओं के तरकश से
तीरों को निकालना
फिर चढ़ा देना
प्रेम के धनुष पर....
अब वे स्वतंत्र है
हवा पर सवार
नुकीले तीर
प्रेम की अग्नि में बुझाए हुए
लालसाओं को लादे हुए
नेपथ्य से दूर
कमान के नियंत्रण से विमुख
हवा के झोकों के मध्य
लक्ष्य से अलाहिदा
भौतिकी के नियमों से परे
सवेंग आवॆग त्वरण से भिन्न
कर्म से भाग्य को चीरते हुए
सुदूर किसी अनजाने लक्ष्य को भेदते हुए
कामनाओं के तरकश से निकले ये बाण
इच्छित अनिच्छित को गौड़ कर देते है
नेपथ्य से निहारता है वो
ठगा हुआ सा
विद्या की निपुणता पर क्षोभ करता हुआ
लक्ष्य को भेद देने के टूटते अहम् को
भौतिकी के नियमों को
कर्मवाद के सिद्धांतों को
देखता है वो छिन्न भिन्न होते हुए
नेपथ्य से
सोचता है वो
नीयति को
ईश्वर को
संसार के नियमों से अलग
स्वयं को पाता है
नेपथ्य में
असहज और अप्रासंगिक
वह सोचता है
नेपथ्य से...
स्वयं को पाता है
आभासी नेपथ्य में
कल्पित मंच को
स्वप्निल कामनाओं को
आभासी तीरों को
झूठे धनुष को...
वह चलता है
बोझिल कदमों से
उस नेपथ्य की ओर..
जहाँ से संचालित होती है
कर्म और भाग्य की कहानियाँ
जहां बंटती है कामनाएं
सुदूर क्षितिज की ओर...
नेपथ्य से नेपथ्य में
विलीन होता हुआ...
सूर्य की तरह...
वह ....
नेपथ्य में...


कृष्ण कुमार मिश्र(25मई 2014)

2 comments:

pooja pandit said...

Very very nice shayari thanks for sharing I loved it
Birthday Wishes

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