Tuesday, June 17, 2014

दयार ए हिज्र में तक्सीम हम भी हो गए...



वादों के बोझ को उठाते है रोकर
झूठ के पुलन्दे को सर पर बिठाते है।

दयार ए गैर में मेहमां बने बैठे है वो
मगर अफ़सोस गफ़लत में दयार ए ग़म बनाते है?

हमें तो खौफ है उनके अहद की रोशनाई से
बनाकर घर फिर वो मकबरे की छत बनाते है

चलो उनके दयार ए गर्ब में देखें ज़रा
वो क्या छुपाते है? हमें और क्या बताते है।

दयार ए हिज्र में तक्सीम हम भी हो गए।
दयार ए हिन्द में अब हम फ़कत कुछ गीत गाते है।

दयार ए इश्क में दाखिल हुए थे सरफरोशी से
दयार ए ग़म में हम अब सभी से मुहं छुपाते हैं।

दयार ए हक़ में झूठे लोग बैठे थे।
दयार ए उम्र में अब खुद को हम कमजर्फ पाते है।

बुनियाद के पत्थर को मारते है ठोकर
ऊंची इमारत के आगे सर झुकाते है। 

कृष्ण कुमार मिश्र "कृष्ण"

6 comments:

केवल राम said...

कृपया आप अपने इस महत्वपूर्ण हिन्दी ब्लॉग को ब्लॉग सेतु ब्लॉग एग्रीगेटर से जोड़ें ताकि आपकी रचनात्मकता से अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हो सकें .... !!! यह रहा लिंक .... !!!

http://www.blogsetu.com/

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना बधाई

-जयंती जोशी

KK Mishra of Manhan said...

शुक्रिया

Anonymous said...

बहुत सुंदर ....


-शीतल

SecondLIfeResort said...

SUnder

ujala yadav said...

very very nice post.